हो सके तो – ग़ज़ल
- salil05
- May 2
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हो सके तो, किन्ही यादों के सहारे जी लो
रात स्याही सी, सितारों के सहारे जी लो
चली जातीं हैं खुशियां कहाँ रुकतीं ये
रह गए ग़म तुम अब इन्हीं के सहारे जी लो
कैसी रंगीन वो दुनिया जहां झंकारें थीं
गा देतीं थीं बहारें जहां चल जाती थीं
कदम कदम पे मेरे ताल धमधमाती थी
ढूंढता हूँ अब खोयी सी उन बहारों को
वहीँ तो हूँ, कहीं तो हूँ, न जाने क्या कमी है
मैं इस बार यूं गिरा, कि उठना ही नहीं है
न कोई नाद, न ही ताल, सिर्फ कपकपी है
कब से चल रही है सांस, अब ये थक चुकी है
ये आंसूं मेरी इन आँखों को ये गला देंगे
मोम अब ख़त्म हो चली, लौ बुझा देंगे
करने को अब मेरे पास कुछ है भी नहीं
हैं सिर्फ लफ्ज़, इस गीत को बना देंगँ?

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