बेतलब
- salil05
- May 2
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दिल में लिए प्यार, निकला गुलज़ार
मगर खो आया
कल था मासूम, हर इकरार
अब तो रो आया
मायूस मन, शक-ए-नज़र
दूर किया, जो भी आया
वापस आने का साधन न था
कोई चाह, लक्ष, कोई बंधन न था
छोड़ बैठा हर मशक्कत
अब तरसना छोड़ आया
भागती फिरती थी दुनिया
जब तलब करते थे हम
अब जो नफरत हमने की
वो बेकरार आने को हैं
Inspired by a famous poem

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