झड़ती दीवारें
- salil05
- May 2
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जो दीवारें झरझरित हो टूटतीं हों, टूटने दो
अश्रु यदि निरंतर फूटते हों, फूटने दो
कदाचित ही कोई मौसम ऐसा आता है
जो इतना कुछ करने की ताक़त रखता है
झड़ती दीवारें अकिंचन खड़ी
उनपर छतें नहीं डल सकतीं हैं
एक नहीं अनगिनत दीवारें, स्वयं ही
झरझर करनी पड़ सकतीं हैं
उस पुरातन झरझरित युग मूर्ति को टूटने दो
जिस शिला पर हाथ रख दोगे वही भगवान होगी
Concluding lines inspired by another poem

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