जो बीत गई सो बात गई
- salil05
- May 2
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अरबों साल
सारी सृष्टि का
ज्ञान, सारी तपस्या
समय की शुरुआत से
आज तक की विपासना
खर्च करके, एक परमाणु
अधयात्म प्राप्त करता है
बीज बन फूटता है
धरती की छाती में मिली
एक एक बूँद पे अपने
अस्तित्व का प्रश्न
छोड़ देता है
सौ मुश्कलों का सामना
सौ किस्म के साधन
उसकी कलि बनने की
आकांक्षा पूर्ण होती है
बिना चेतावनी, एक क्षण में
भूले भटके, पैरों की भगदड़ में
मिट्टी में मिल जाता है
इसमें किसी का दोष कहाँ
हर कोई मग्न मदहोश यहां
अब तो बीत गया
ऐसा, हो भी जाता है
बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
Inspired by Harivansh Rai Bachchan's namesake poem

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