जागृति
- salil05
- May 2
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ये नीला सा ओस का भीगा समन्वय
ये धीमे धमकता सा धरती का ह्रदय
रात की चुप्पी को कोयल थी चीरे
धूप सुनहरी आखों पे धीरे धीरे
ये काली सी, खाली सी ढलती अंधियारी
बढ़ते सुर किरणों के, पुकारें बारी बारी
भय छोड़ो बाहर आकर तो देखो
समय तुम्हारा है, तुम आज़मा के तो देखो
न जाने मैं क्यूँ इस बेचांद रात से भागा था
ये वो कहानी है जिसमें मैं जागा था

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