उम्मीद तोड़ना
- salil05
- May 2
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एक चित्र उभरा सा था
गुदगुदी सा, मनमोहक
कपकपी क्या उठी मन में
वे चित्र हमने मिटा दिया
भावों का पहाड़
सपनों की बारिश में नहलाया हुआ
हर पात हर शाख भरी भरी
हरे वन हरे सब बाग़
बिजली क्या कड़की
हर पेड़ हमने जला दिया
बस खुलती सी कली थी
महकने ही लगी थी
भँवरे रिझाने को आते ही थे
ध्यान भटका ज़रा सा
हमने उस कली को
पैरों तले रौंध दिया
एक थी जो लौ हमारी
रात का सहारा हमारा
बात का बहाना हमारा
बस पल भर की घबराहट, हमने
रातों का सहारा बुझा दिया
चेहरा सा पकड़ लिया था
उम्मीद का नाम भले न हो
एक एहसास बसा लिया था
आखों में आंसूं भरे थे
देख कर भी नहीं देख रहे थे
न चाहते भी, उस उम्मीद को
हमने खून से नेहला दिया

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