आतिथ्य
- salil05
- May 2
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जज़बातों का आना जाना तो रोज़ का है
ये रिश्ता कभी स्वागत कभी अफ़सोस का है
इजाज़त के मोहताज नहीं ये जज़्बात
कह के भी नहीं आते कि कब तक रहेंगे साथ
किन्हीं की मैं मेहमान-नवाज़ी करता हूँ
कुछ मुझसे करवाते हैं
कोई तो मेरी बात मान भी जाते
ज़िंद्दी वाले ज़रा शक्ल पे आकर ही बाज़ आते हैं
आते हैं, सिखाते हैं
कुछ सिखा कर फिर चले जाते हैं
जज़बातों का आना जाना तो रोज़ का है
ये रिश्ता कभी स्वागत कभी अफ़सोस का है

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