अवर्णनीय प्रेम
- salil05
- May 2
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पत्तों पे ओस जुड़ती जाती
बूँद बूँद कर, इखट्टी हो जाती
पत्ते का दिल भर सा आता
दोनो हाथ जोड़कर, झुककर
ख़ुशी के वे आँसूँ टपकाता
जब ऐसा मैं तुमसे प्यार करूँ
अभिव्यक्त कैसे हर बार करूँ
सूरज की ताप सोती जाती
शीतल संध्या जगती आती
जीर्ण क्रोध जैसे मिट जाता
दिन का श्रम दिन का रह जाता
रात्रि अपनी ही मादकता लाती
हर तनाव पे औषधि लगाती
जब ऐसा मैं तुमसे प्यार करूँ
अभिव्यक्त कैसे हर बार करूँ
वैसे तो धागे औरों को सिलते
चिरते दिलों में टाँका बनते फिरते
मगर स्वयं एक दूसरे में उलझते हैं
गाँठें बन, अपनों की ही साँसे घोटते हैं
तुम्हारे होते सब बाधाएँ भूल जातीं
दो धागे एक दूसरे में गुँथ जाते
आप हममें समातीं, हम आपमें समाते
जब ऐसा मैं तुमसे प्यार करूँ
अभिव्यक्त कैसे हर बार करूँ

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