Tiny Poems
- salil05
- May 2
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इतनी अक़्ल लगाकर भी
मिलती ग़म से रिहाई नहीं
खुदा करे रहमत, हमें
बेअकली मिल जाए कहीं
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तुमने अदा-ए-हुस्न करवट ली
हमारी रात काली हो गयी
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खुश किस्मत हो जो हर बात पे हर कोई आ जाता है
नहीं तो
मरता देख ज़माना, रुकता है, देख कर चला जाता है
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क्यूँ बवंडर अपने अंदर यूँ सम्भाले घूमते हो
वक़्त रहते जो ज़रूरी होगा वो होके रहेगा
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ढूँढें तो भी अस्तित्व नहीं मिल पाता हमें
दिखावे ढंग पहनाई से
सिर्फ़ मदद की तासीर ऐसी
जो मिलवाती हमें खुदाई से
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कड़वाहटों की गुंजाइश तो तब होगी
जब मुझमें बची कुछ जान होगी
जीतने की उम्मीद वाले खेला करते हैं
मैं क्या ही खेलूँ जब मेरी हार होगी
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साफ़ दिल, सीधे ही से थे
मुश्किल को मुश्किल समझते न थे
क्या पता था प्यार करने वाले कभी
अकेलेपन को इतना तरसते भी थे
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कभी देखता हूँ मैं हाल, साफ सीनों का
बचाए हुए हज़ारों लाख खून पसीनों का
भरी चोटों पे ग़ज़ल-ए-नाज़ मन में उठता है
जो गिर के उठ सका हर बार, दिल उसपे लुटता है

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